भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

निशाना / शेखर सिंह मंगलम

935 bytes added, 09:32, 30 अप्रैल 2022
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शेखर सिंह मंगलम |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शेखर सिंह मंगलम
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
अपनत्व की छननी में सैकड़ों बार तुमको छाना था
बारहा ग़लतियाँ निकलीं मगर तुम्हें अपना माना था

हजारों अच्छाईयों पर एक ग़लती मेरी पड़ गई भारी
हालांकि तुम साथी न थे फ़ायदा तुम्हारा निशाना था

रिश्ते के छज्जों पर खुदगर्ज़ियों के बुने हुए जाले थे
हित साधना ही था तुम्हारा लक्ष्य रिश्ता तो बहाना था।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,132
edits