भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घर / कुँअर बेचैन

779 bytes added, 14:33, 4 नवम्बर 2008
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुँअर बेचैन }} घर कि जैसे बाँसुरी का स्वर दूर रह ...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुँअर बेचैन
}}

घर

कि जैसे बाँसुरी का स्वर

दूर रह कर भी सुनाई दे।

बंद आँखों से दिखई दे।



दो तटों के बीच

जैसे जल

छलछलाते हैं

विरह के पल


याद

जैसे नववधू, प्रिय के-

हाथ में कोमल कलाई दे।


कक्ष, आँगन, द्वार

नन्हीं छत

याद इन सबको

लिखेगी ख़त

आँख

अपने अश्रु से ज्यादा

याद को अब क्या लिखाई दे।
Anonymous user