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प्रेम का उदात्त रूप, ‘तुम सर्दी की धूप’ / स्मृति शुक्ला के विचार निम्नलिखित लिन्क पर-
[http://gadyakosh.org/gk/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AE_%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%89%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4_%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%AA,_%E2%80%98%E0%A4%A4%E0%A5%81%E0%A4%AE_%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%A7%E0%A5%82%E0%A4%AA%E2%80%99_/_%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%BF_%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE]
'''किससे कहूँ, कितना कहूँ'''
'''किससे कहूँ, कितना कहूँ'''
अपने विचारों को प्रस्तुत करने में कोई भी व्यक्ति तर्क का सहारा ले सकता है। जहाँ तर्क समाप्त हो जाते हैं, वहाँ से कविता शुरू होती है। जहाँ भाव जुड़ते हैं, वहाँ कविता का स्रोत बहने लगता है। अँजुरी भर आसीस से आगे मैं घर लौटा में क्या कहूँ, कैसे कहूँ भूमिका में बात कथ्य और प्रस्तुति को लेकर थी। यह भी मैंने कहा था-अपनी कविता के बारे में बात करना सबसे कठिन है। इतने लम्बे अन्तराल में बहुत कुछ बदल गया। अगर आज भी कुछ नहीं बदला, तो वह है मेरा हृदय। आज भी किसी दुखी के लिए उससे पहले दुखी हो जाता है, प्यार करने वाले, सम्मान देने वाले के लिए विनत हो जाता है। अवसरवाद और उपभोग की संस्कृति के इस युग में बहुत सारे साथी आए और विगत वर्षों में कहीं दूर खो गए. जो अच्छे थे, वे आज भी साथ हैं, कुछ अच्छे और भी आए और मन-प्राण से जुड़े। कविता मेरी जीवन-रेखा है। मैं बिना खाए काफ़ी देर तक रह सकता हूँ; लेकिन बिना साँस लिये तो नहीं रह सकता। कविता मेरे लिए वही साँसों का आना-जाना है। गुस्सा आता है, नहीं छुपता, किसी बात पर आहत होता हूँ, नहीं छुपा सकता, किसी के प्रति असीम अनुराग है, नहीं छुपाता, सम्मान है तो उसे व्यक्त करने में देरी नहीं लगाता। इस संग्रह की कविताओं में प्रेम विषयक कविताएँ अधिक हैं। दोहे अधिक हैं, मुक्तक अधिक हैं, तो अपेक्षाकृत छोटी कविताएँ भी अधिक हैं। इन कविताओं में मैं अकेला नहीं हूँ, वे भी हैं, जो सदा मेरे साथ हैं, भावनात्मक रूप से शक्ति के रूप में, प्रेरणा के रूप में, एक आश्वस्ति के रूप में यह कहते हुए-हम आपके साथ हैं, अहर्निश!