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Kavita Kosh से
बिसराई पतझड़
हरे हो गए हम|
सुख दुःख को जीवन
तराजू पे तोला
खड़े हो गए हम|
सूरज ना पूछे
उगने से पहले
कड़े हो गए हम
बड़े हो गए हम !!!!
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