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|रचनाकार=हरबिन्दर सिंह गिल
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|संग्रह=बर्लिन की दीवार / हरबिन्दर सिंह गिल
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<poem>
पत्थर निर्जीव नहीं हैं
ये जागरूक भी होते हैं।

यदि ऐसा न होता
स्कूल की दीवारों में लगे
इन पत्थरों की
इतनी महानता न होती।

क्योंकि स्कूल के प्रांगण में
विचरते इन बच्चों के जीवन पर
इनकी बहुत गहरी निगाह होती है
और उनके एक-एक कदम को
इस गहराई से निहारती हैं
जैसे कोई सतर्क व्यक्ति
कदमों की आहट से ही
आने वाले कल को पढ़ लेता है।

तभी तो बर्लिन दीवार के
ये ढ़हते टुकड़े पत्थरों के
कह रहे हैं कि उन्हें
हर स्कूल के प्रांगण की
दीवार में लगाया जाए
ताकि ऐसी बँटवारे की दीवारों
के विरूद्ध
जागरूकता का वातावरण
बच्चों को रग-रग में समा सके।</poem>
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