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|रचनाकार=प्रदीप त्रिपाठी
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<poem>
तुम्हारा जाना
जैसे कि कोई शब्द नहीं

तुम्हारा न होना
जैसे कि कोई धूप और मिट्टी नहीं

तुम सा न होना
जैसे कि गुमशुदा मन

तुममें न होना
जैसे कि आत्मा की रुंधी आवाज

तुम्हारा होना
जैसे कि एक अश्क छलकता प्रेम

तुमसे दूर होना
जैसे कि हर दुःख पहाड़ और नदी।
</poem>