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क्‍या हो रहा है यह मेरे साथ
समझ नहीं पाओगे तुम
धुँधला धुन्धला कर रहा है मुखौटे के पीछे किसकी नजरों नज़रों कोबर्फीले अंधड़ बर्फ़ीले अन्धड़ का यह धुँधलकाधुन्धलका ?
सोए या जागे होने पर
यह तुम्‍हारी आँखें चमकती हैं क्‍या मेरे लिए?
दिन-दोपहर में भी क्‍यों
बिखरने लगते हैं रात्रि-केश?
तुम्‍हारी अपरिहार्यता ने ही क्‍या
विचलित नहीं किया है मुझे अपने पथ से?
क्‍या ये मेरा प्रेम और आवेग हैं
खो जाना चाहते हैं जो अंधड़ अन्धड़ में?
ओ मुखौटे, ! सुनने दे मुझे,अपना अंधकारमय अन्धकारमय हृदय,
ओ मुखौटे, लौटा दे मुझे
मेरा हृदय, मेरे उजले दुख!
</poem>
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