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|संग्रह=उडीक पुरांण / चंद्रप्रकाश देवल
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<poem>
म्हैं विजोग रै न्यावड़ै पाक्योड़ी गार हूं
जे केलू व्हैतौ
तौ संजोग री बरसाळी छाय देवतौ
जे व्हैतौ खेरौ-खारौ
मिळण री पगडांडी बिछ जावतौ

रातौ-रातौ दीसूं भलांई
म्हैं लाल-मजीठ कोनीं
कनैकर पिणघट जावती पिणिहारी
बिरथा ताक-झांक मत कर
थारै घड़ै रै ठींडै
म्हारै कीं कारी नीं लागै

उडीक मत
मन मोळौ मत कर
अबेळौ व्है है
पांणी रौ सरतन कर
रात कीकर काढैला!
</poem>
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