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|संग्रह=उडीक पुरांण / चंद्रप्रकाश देवल
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<poem>
नीं होठां मांय नीं बारै
सबद कद दीखै

बरसां न बरस पैली वै
जद हा कांन-मारगी
मन जांणी माछरां करता
इंछा परवांणै भेख धरता

कदैई हिचकी, कदैई ओळूं
कदैई हालरियौ बणता
बण जावता रोवती आंख री नींद

जद सूं चाळ्यौ है नवौ चाळौ सबदां
आंख-पंथी व्हैण रौ
जीव-सबद बिचाळै आंतरौ बधग्यौ
रोवती आंख नै दीसै तौ दीसै कीकर
निजर अेक दांण में अेक इज कांम करै

मांचा माथै
पसवाड़ा फोरतौ अनींदौ अमूंझै है जीव
अर सुथराई सूं लिख्योड़ौ पड़्यौ है हालरियौ
कनला तिपाया माथै डायरी में
फेर कांई हालरियौ पढियां
आंख जप सकै कोई?

असल में आ तासीर
बोळाय दी सबदां
जद वै बिनां उचार ई
पाधरा जाय जमग्या कागदां माथै।
</poem>
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