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छळ / चंद्रप्रकाश देवल

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|संग्रह=उडीक पुरांण / चंद्रप्रकाश देवल
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<poem>
उण कही - ‘रूप सदावंत रैवै’
म्हैं नीं मांग्यौ इणरौ सबूत
म्हैं कीं नीं कह्यौ
उण म्हारौ ‘कीं नीं’ मांन लियौ

उण कही - ‘आ इज व्है प्रीत’
म्हैं झिकाळियौ मांनग्यौ उणरी ‘व्है’

उण कही-‘अेक आछी जूंण उमर री साबली नीं व्है’
बिना कीं बेस-हुरजट रै म्हें दियौ हुंकारौ
अर आवगी उमर
उडीकतौ रह्यौ जूंण
‘आछी जूंण’ अर ‘व्है’ जैड़ा सबद
आपरा अरथ देवण सूं नटगा
अर ‘जूंण’ म्हारा सूं छळ करगी
‘व्है’ अैड़ौ व्है।
</poem>
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