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|रचनाकार=चीनुआ एचेबे
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<poem>
ज़रा सा धैर्य धरो, मेरी प्रिय !
मेरी ख़ामोशी की इस घड़ी में;
हवा भरी है भयँकर अपशकुनों से
और गीतपक्षी मध्याह्न के प्रतिशोध के भय से
अपने स्वर छुपा आए हैं
कोकोयम की पत्तियों में…

कौन सा गीत तुम्हें सुनाऊँ, मेरी साँवरी, जब
उकड़ूँ बैठे दादुरों की टोली
सड़ियल दलदल के गलफड़ प्रशंसा-गान से
दिन को उबकाई से भर रही है
और बैंगनी मूँड़ वाले गिद्ध हमारे घर की छप्पर पर बैठे
पहरा दे रहे हैं ?

मैं ख़ामोश इन्तज़ार में गाऊँगा
तुम्हारी उस ताक़त को जो मेरे सपने
अपनी शान्त आँखों में सहेज रखेगी
और हमारे छाले भरे पाँवों की धूल को सुनहले पैताबे में
तैयार उस दिन के लिए जब लौटेंगे
अपने निर्वासित नृत्य ।
</poem>
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