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बोल चिरैया / शशिकान्त गीते

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|संग्रह=मृगजल के गुंतारे / शशिकान्त गीते
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<poem>
आँगन में बोल
दो बोल चिरैया ।

अनचाहे ताप से
तुलसी कुम्हलाई
धीरज भी लेने लगा
लम्बी जमुहाई
तू तो ना लेगी
कुछ मोल चिरैया ।

जीवन क्या केवल है
धूप, धूल, किरचें ?
जलती दोपहरी, चल
चाँदनी हम सिरजें
आन्धियों को तौल
पर खोल चिरैया ।

सोच - समझ दुर्गन्धित
अन्धियारा छाया
देहरी पर सत्य खड़ा
रक्त में नहाया
करना मत बात
गोलमोल चिरैया ।
</poem>
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