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Kavita Kosh से
तेज़ किए उसने खाली जगहों में अपने क़दम ।
जिनके भी सामने वह प्रकट हुआ
सबने क़सम खाते हुए कहा --—
कोई उद्देश्य नहीं था
नंगे सिर निर्वस्त्र टहलते उस प्रेत का ।
हमारी भी भेंट हुई है उससे ।
सहमत होंगे आप भी
उसके-जैसी भयावह नग्नता
किसी ने नहीं देखी आज तक ।
कौन है वह ? युद्ध के वर्षों की निर्मम धरोहर
जब शत्रु सैनिक सर्दियों में क़ैदियों के उतरवा देते थे कपड़े
और कहते थे =- — 'भाग जा !'
सम्भव है यह कोई पागल स्वाभिमानी हो
प्रकृति के साथ छेड़ बैठा हो युद्ध