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|रचनाकार=अहमद फ़राज़
|संग्रह=खानाबदोश / फ़राज़
}}
[[Category:ग़ज़ल]]

ज़ख्म को फ़ूल तो सर-सर को सबा कहते हैं<br>
जाने क्या दर्द है, क्या लोभ है, क्या कहते हैं<br><br>
क्या कयामत है कि जिनके लिये रुक रुक के चले<br>
अब वही लोग हमें आबला-पा कहते हैं<br><br>
कोई बतलाओ कि इक उम्र का बिछुडा महबूब<br>
इत्तेफ़ाकन कहीं मिल जाये तो क्या कहते हैं<br><br>
ये भी अन्दाज़े सुखन है कि खता को तेरी<br>
ग़मज़-ओ-इश्वः-ओ-अन्दाज-ओ-अदा कहते हैं<br><br>
जब तलक दूर है तू तेरी परस्तिश कर लें<br>
हम जिसे छू ना सकें, उसको खुदा कहते हैं<br><br>
क्या त़अज्जुब है कि हम अहले-तमऩ्ना को फ़राज़<br>
वो जो महरूम-ए-तमऩ्ना हैं बुरा कहते हैं<br><br>
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