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{{KKRachna
|रचनाकार=अहमद फ़राज़
|संग्रह=खानाबदोश / फ़राज़
}}
[[Category:ग़ज़ल]]

गनीम से भी अदावत में हद नहीं माँगी<br>
कि हार मान ली, लेकिन मदद नहीं माँगी<br><br>
हजार शुक्र कि हम अहले-हर्फ़-जिन्दा ने<br>
मुजाविराने-अदब से सनद नहीं माँगी<br><br>
बहुत है लम्हा-ए-मौजूद का शरफ़ भी मुझे<br>
सो अपने फ़न से बकाये-अबद नहीं माँगी<br><br>
कबूल वो जिसे करता वो इल्तिजा नहीं की<br>
दुआ जो वो ना करे मुस्तरद, नहीं माँगी<br><br>
मैं अपने जाम-ए-सद-चाक से बहुत खुश हूं<br>
कभी अबा-ओ-कबा-ए-खिरद नहीं माँगी<br><br>
शहीद जिस्म सलामत उठाये जाते हैं<br>
तभी तो गोरकनों से लहद नहीं माँगी<br><br>
मैं सर-बरहना रहा फ़िर भी सर कशीदा रहा<br>
कभी कुलाह से तौकीद सर नहीं माँगी<br><br>
अता-ए-दर्द में वो भी नहीं था दिल का गरीब<br>
फ़राज मैनें भी बख्शिश में हद नहीं माँगी<br><br>
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