भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जितेन्द्र निर्मोही |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जितेन्द्र निर्मोही
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita‎}}
<Poem>
अपने ही शहर में अंजान हुए
अपने ही घर के मेहमान हुए
गीतों ने रूख मोड़े
ग़ज़लों ने मुख मोड़े
दिलकश संवादों ने
सामाजिक साथ छोड़े
परिचय से भटके, बेनाम हुए।
रूसवाई साथ लगी
डूब गये होंसले
बाढ़ के बहाव बहे
प्‍यार के वो घोंसले
लहर लहर उठ गई, तूफान हुए।
जैसे कोई मेले में
भीड़ के से रेले में
भटक जाए बालक जो
सांझ के झमेले में
अंगुली के आसरे गुमनाम हुए।
</Poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
5,484
edits