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{{KKRachna
|रचनाकार=जितेन्द्र निर्मोही
|संग्रह=
}}
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<Poem>
सैअर सूं गांव
कांई आवां
लार लावां
गोबर बासीदां की गंध।
पांडू पुती भीत्यां
आगणां मे मंड्या मांडण्यां
ळीमडा कै नीचै
बैठ्या बूडा मनख्यां का
संवाद।
दूरै पणघट सूं
पाणी लाती बायरां को
दरद।
ताळाब को घाट,
नंदी की कराड़,
रीता भांडा को सुख।
</Poem>
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सैअर सूं गांव
कांई आवां
लार लावां
गोबर बासीदां की गंध।
पांडू पुती भीत्यां
आगणां मे मंड्या मांडण्यां
ळीमडा कै नीचै
बैठ्या बूडा मनख्यां का
संवाद।
दूरै पणघट सूं
पाणी लाती बायरां को
दरद।
ताळाब को घाट,
नंदी की कराड़,
रीता भांडा को सुख।
</Poem>