भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
वहाँ तुमने निभृत अवकाश पर
किया संग्रह दुर्गम के रहस्यों को,
प्रकृति का दृष्टि-अतीत जादू
जगा रहा था मंत्र तुम्हारी चेतनातीत मन में ।
प्रदोष काल के झंझा बतास से है रुद्ध श्वास ,
जब बाहर निकल आए पशु गुप्त गुफ़ा से,
आओ, युगान्तकारी कवियों,
आसन्न संध्या की शेष रश्मिपात में
कहो — "क्षमा कीजिए" —
हिंस्र प्रलाप के मध्य