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<poem>धर मजला भई धर कूचां।
अेक बात सब नै पूछां॥
धर कूचां भई धर मजलां।
समझदारी सूं मिल पढलां॥
आओ साथियां मिल हंसलां।
धर कूचां भई धर मजलां॥

अणभणियां घोडै चढै,
भई भणियां मांगै भीख।
गयो जमानो जुगां पुराणो,
जुगां पुराणी सीख।
इण जुग अैड़ी बातां लाडी,
अणभणियां रो अड़ जा गाडी।
लावै भैंस कदै न पाडी,
सूखै ऊभी फसलां जाडी।।
रुळजा टाबर बिकजा गाडी,
बातां रा आखर भजलां।।
बीती बातां जिण में बेटा-बेटी भेद जताता।
नवो जमारो, नवो मांनखो,
नवी ग्यान री बातां।
बेटी जग में जस री खांण,
मीरां पन्नां रै परमांण।
उणनै लिछमी बाई जांण,
बेटो-बेटी अेक समान।।
थारो वधासी मरुधर मान,
सीखड़ली हिंवड़ै सजलां॥
औसर-मौसर कांण-कायदा भूल जगत में भारी।
छोड रीत अै दान दायजा वीरा थारी म्हारी॥
माता-बैनां नै समझावां,
वां नै जीवण ग्यान बतावां।
जुगडै नूंवो धरम कमावां,
प्रेम-प्रीत री बेल लगावां॥
जात-धरम रो भेद मिटावां,
अपां गावां रै गीतां गजलां॥</poem>
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