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<poem>उमरिया बीत जासी
बीत जासी रे उमरिया बीत जासी,
जीवण गगरिया थारी रीत जासी।
जाग जग जाग म्हारा जाग साथी,
मानलै हिवड़ै में म्हारी बात साची।
सीख सीख सीख म्हारी बात साची॥

इतरी उमर गंवायदी, रह्यो बटाऊ सोय।
अब ही आंख उघाड़लै, बीज प्रीत रा बोय॥

इण जीवण में आय नै, जे नीं कीनी प्रीत।
तो पछै पछतावसी, ऊमर जासी बीत॥

जात-पांत रै जाळ में, उळझ रैया नर-नार।
मन रा मणिया पोयलै, प्रेम प्रीत रै तार॥

नफरत कर कर नै कदै, मिटै न मन रो मैल।
प्रेम प्रीत निरमळ नदी, जिवड़ा जळ में खेल॥

चेत चेत रे चेत थूं, थारी नींद नसाय।
करम जगत में जीवसी, जसड़ो जगती गाय॥</poem>
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