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<poem>
भगत सिंह नौजवान है
सिर-फिरा

जज़्बाती है, गर्म ख़ून है
जोश के पास होश नहीं
हक़ीक़त नहीं पढ़ते बच्चे
बस, अड़ जाते हैं

यह टिप्पणियाँ ग़रज़-परस्तों की हैं

यह नहीं कि वे नहीं जानते
भगत सिंह किस बात का नाम है
जानते हैं

डर जाते हैं । सोचते तो हैं, बोलते नहीं
उनको पता है बोलेंगे तो
इतने बड़े राष्ट्र का बापू कौन बनेगा
चाचा से छूट जाएगा भारत
गुलाब के फूल
कोट की जेब में नहीं उगेंगे
मज़दूरों की मुस्कान में खिलेंगे
पर नहीं उगने देंगे वे बीज
अंकुरित हैं जो

भगत सिंह के अन्दर
गोल-गोल घूमती तकली की
सफल चाल पर
धरती रो पड़ी

भगत सिंह धरती को नतमस्तक हुआ :
हे माँ ! बीज है हरा कायम
ज़रूर कभी अंकुरित होगा
तेरे अन्दर ।

'''मूल पंजाबी भाषा से अनुवाद : रुस्तम सिंह'''
</poem>
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