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<poem>
पार्क में
पुलिस का उच्चतम अफ़सर
गश्त पर है
ट्रैक सूट में फ़ास्ट वॉकिंग

उसके पीछे-पीछे
पाँच फुट के फ़ासले पर
सिपाही वर्दीधारी
घोड़े की दुलकी चाल पर
अपनी चाल
अफ़सर की सहजता मुताबिक
असहज कर रहा है

अचानक
पाँच फुट के फ़ासले के बीच
कहीं से आ गया मार्क्स
सिपाही की स्कूलिंग करता

मुझे तुझ पर तरस नहीं गुस्सा आ रहा है
तू इसके बराबर क्यों नहीं चलता

तुम दोनों इनसान हो, बराबर हो
बराबर चल
बस, इतना ही अन्तर है
बड़ा पर्स
और फटे-पुराने कपड़े में
बँधे सिक्के

मैं तेरे लिए
एक पर्स छीन के लाता हूँ
तुम इसके बराबर चलने लगोगे

सिपाही टेंस हो गया
नहीं, कामरेड नहीं !
मैं तीन सदियों से
इसके पीछे-पीछे
चल रहा हूँ

मुझे पता है सब
मुझे बातों में
ना उलझा

मुझे
ड्यूटी के बाद
अपने बच्चों के लिए
अच्छे एक स्कूल का
दाख़िला-फ़ार्म

ख़रीदने जाना है ।

'''मूल पंजाबी भाषा से अनुवाद : रुस्तम सिंह'''
</poem>
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