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{{KKRachna
|रचनाकार=तेमसुला आओ
|अनुवादक=श्रुति व यादवेन्द्र
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मेरी आत्मा की
ख़ाली जगहों में
परछाइयाँ
हैं लम्बी
और हवाएँ सर्द
ये लम्बी होती हुई परछाइयाँ
यादों को
मार रही हैं ।
मेरी आत्मा की
ख़ाली जगहों में
गूँजें
खोखली हैं
स्मृति मरती हुई
खोखली गूँजें
प्रतिध्वनित होती हैं
मृत्यु को पूर्ण करती हुई ।
—
'''अँग्रेज़ी भाषा से अनुवाद : श्रुति व यादवेन्द्र'''
</poem>
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|रचनाकार=तेमसुला आओ
|अनुवादक=श्रुति व यादवेन्द्र
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मेरी आत्मा की
ख़ाली जगहों में
परछाइयाँ
हैं लम्बी
और हवाएँ सर्द
ये लम्बी होती हुई परछाइयाँ
यादों को
मार रही हैं ।
मेरी आत्मा की
ख़ाली जगहों में
गूँजें
खोखली हैं
स्मृति मरती हुई
खोखली गूँजें
प्रतिध्वनित होती हैं
मृत्यु को पूर्ण करती हुई ।
—
'''अँग्रेज़ी भाषा से अनुवाद : श्रुति व यादवेन्द्र'''
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