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|रचनाकार= विनीत मोहन औदिच्य
}}
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फहरा रहे तिरंगा, ये देश है हमारा
भगवान इस वतन में, सबका बने सहारा
आजाद हिंद में अब , रिपु बीज विष न बोये
इतना खयाल रखना, माँ भारती न रोये।
है रीत जो जगत की, उसको सदा निभाना
वैभव बढ़े तुम्हारा, तुम प्रीति बस बढ़ाना
माँ से बिछोह होना, जीवन लगे अधूरा
देखा गया दिवस में, वो स्वप्न हो न पूरा।
लाचार जो धरा पर, उनका खयाल रखना
नारी न लाज खोये, उसकी संभार करना
हिन्दी समान भाषा, जग में मिले न कोई
दुर्भाग्य देश का है, पीढ़ी जवान सोई।
अब देश प्रेम की तुम,घर घर अलख जगाओ
है स्वर्ग से निराली , स्वर्णिम इसे बनाओ ।।
-0-
</poem>
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|रचनाकार= विनीत मोहन औदिच्य
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फहरा रहे तिरंगा, ये देश है हमारा
भगवान इस वतन में, सबका बने सहारा
आजाद हिंद में अब , रिपु बीज विष न बोये
इतना खयाल रखना, माँ भारती न रोये।
है रीत जो जगत की, उसको सदा निभाना
वैभव बढ़े तुम्हारा, तुम प्रीति बस बढ़ाना
माँ से बिछोह होना, जीवन लगे अधूरा
देखा गया दिवस में, वो स्वप्न हो न पूरा।
लाचार जो धरा पर, उनका खयाल रखना
नारी न लाज खोये, उसकी संभार करना
हिन्दी समान भाषा, जग में मिले न कोई
दुर्भाग्य देश का है, पीढ़ी जवान सोई।
अब देश प्रेम की तुम,घर घर अलख जगाओ
है स्वर्ग से निराली , स्वर्णिम इसे बनाओ ।।
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