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{{KKRachna
|रचनाकार=पाब्लो नेरूदा
|अनुवादक=अशोक पाण्डे
|संग्रह=बीस प्रेम कविताएँ और उदासी का एक गीत / पाब्लो नेरूदा / अशोक पाण्डे
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
एक स्त्री की देह, धवल पहाड़ियाँ, धवल जंघाएँ
तुम दिखाई देती हो एक समर्पणरत दुनिया जैसी
मेरी ऊबड़ - खाबड़ कृषक देह गड़ती है तुम में
और धरती की गहराइयों से पुत्र उपजाती है ।
मैं अकेला था किसी सुरंग सरीखा, चिड़ियाँ उड़ गई मेरे भीतर से ।
और अपने विनाशकारी आक्रमण से रात ने आप्लावित कर दिया मुझे ।
अपने को बचाने के लिए मैंने तुम्हें किसी हथियार की मानिन्द गढ़ा ।
मेरे धनुष के लिए जैसे एक तीर, एक पत्थर गोया मेरी गुलेल में ।
लेकिन प्रतिशोध का पल चला आता है, और मैं तुमसे प्रेम करता हूँ ।
त्वचा और काई की देह । उत्सुक और ठोस दूध की !
उफ़ ! स्तनों के प्याले ! उफ़ ! अनुपस्थिति की आँख !
उफ़ ! स्त्रीत्व के गुलाब ! उफ़ ! धीमी और उदास तुम्हारी आवाज़ !
मेरी स्त्री की देह, मैं बना रहूँगा तुम्हारी गरिमा में,
मेरी प्यास, मेरी असीम इच्छा, जगह छोड़ती मेरी सड़क !
अन्धेरे नदी तट जहाँ बहती है एक अमर प्यास ।
और पीछे - पीछे आती है थकान, और एक अनन्त वेदना ।
—
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अशोक पाण्डे'''
</poem>
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|रचनाकार=पाब्लो नेरूदा
|अनुवादक=अशोक पाण्डे
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}}
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<poem>
एक स्त्री की देह, धवल पहाड़ियाँ, धवल जंघाएँ
तुम दिखाई देती हो एक समर्पणरत दुनिया जैसी
मेरी ऊबड़ - खाबड़ कृषक देह गड़ती है तुम में
और धरती की गहराइयों से पुत्र उपजाती है ।
मैं अकेला था किसी सुरंग सरीखा, चिड़ियाँ उड़ गई मेरे भीतर से ।
और अपने विनाशकारी आक्रमण से रात ने आप्लावित कर दिया मुझे ।
अपने को बचाने के लिए मैंने तुम्हें किसी हथियार की मानिन्द गढ़ा ।
मेरे धनुष के लिए जैसे एक तीर, एक पत्थर गोया मेरी गुलेल में ।
लेकिन प्रतिशोध का पल चला आता है, और मैं तुमसे प्रेम करता हूँ ।
त्वचा और काई की देह । उत्सुक और ठोस दूध की !
उफ़ ! स्तनों के प्याले ! उफ़ ! अनुपस्थिति की आँख !
उफ़ ! स्त्रीत्व के गुलाब ! उफ़ ! धीमी और उदास तुम्हारी आवाज़ !
मेरी स्त्री की देह, मैं बना रहूँगा तुम्हारी गरिमा में,
मेरी प्यास, मेरी असीम इच्छा, जगह छोड़ती मेरी सड़क !
अन्धेरे नदी तट जहाँ बहती है एक अमर प्यास ।
और पीछे - पीछे आती है थकान, और एक अनन्त वेदना ।
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'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अशोक पाण्डे'''
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