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|रचनाकार=पाब्लो नेरूदा
|अनुवादक=अशोक पाण्डे
|संग्रह=बीस प्रेम कविताएँ और उदासी का एक गीत / पाब्लो नेरूदा / अशोक पाण्डे
}}
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<poem>
रोशनी अपनी नश्वर लपट में घेर लेती है तुम्हें
बेसुध ज़र्द ग़मज़दा, उस तरफ़ खड़ी हुई
गोधूलि के पुरातन चक्कों के रू - ब - रू
जो घूमती है तुम्हारे गिर्द ।

निश्शब्द, मेरी दोस्त !
इस मृतक पल के अकेलेपन में अकेली
और भरी हुई आग की ज़िन्दगानियों से ।

फलों की एक डाल सूरज से गिरती है तुम्हारी काली पोशाक पर
रात की विराट जड़ें
अचानक तुम्हारी आत्मा से उगने लगती हैं
और तुम्हारे भीतर छिपी चीज़ें दोबारा बाहर आती हैं
ताकि एक नीला निष्प्रभ देश —
तुम्हारा नवजात
पोषण प्राप्त कर सके

उफ़ ! शानदार और उपजाऊ और सम्मोहक गुलाम
उस वृत्त का जो बारी - बारी घूमता है काले और सुनहरे में :
जागो , नेतृत्व करो और उस सृष्टि को सलाम करो
जो इतना भरी हुई है जीवन से कि नष्ट हो जाते हैं इसके फूल
और यह भरपूर है उदासी से ।

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अशोक पाण्डे'''
</poem>
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