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|संग्रह=सुर्ख़ियों के स्याह चेहरे / रामकुमार कृषक
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<poem>
ख़ास के ही वास्ते है
आम !

आम...
गलियों में
सड़क-फुटपाथ पर
बेतरह छाया हुआ है आजकल
पाल का
या डाल का टपका हुआ
आम कल-जुग का बहुत ही ख़ास फल,

ख़ास ही है
नाम फिर भी आम !

आम...
खाओ काट
चाहे चूस लो
गन्ध इसकी-सी न पाएगी कहीं
खाद-पानी की
कमी में भी सदा
आम मीठा ख़ासकर होता यहीं,

ख़ास का यों
नाश्ता ही आम !

30-5-1976
</poem>
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