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<poem>
प्यार की शम्मा जलाओ तो कोई बात बने
बुग्ज़ नफ़रत को मिटाओ तो कोई बात बने

ज़ीस्त की राह अकेले न कटेगी तुमसे
हमसफ़र हमको बनाओ तो कोई बात बने

मेरी कश्ती को बचाने के लिए तूफां से
नाख़ुदा बनके जो आओ तो कोई बात बने

सब सजाते हैं गुलिस्तान को लेकिन मूसा
दिले-वीरां को सजाओ तो कोई बात बनो
</poem>