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{{KKRachna
|रचनाकार=राहुल द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
युद्ध
असंभव के विरुद्ध
जारी है कदाचित
कब तक?
न मालूम कब तक
पर,
तब तक शायद
चांद तारें हों जब तक...
इतना लंबा युद्ध
सोचा है कभी
जारी रह पाएगा?
असंभव है इसका
जारी रह पाना...
नहीं नहीं
युद्ध तो होगा
असंयम के विरुद्ध...
समाज मे फैली हुई..
हर तरफ घुली हुई
सांस लेने में दूभर हुई
जहर से भी जहरीली
हवा के विरुद्ध...
कैसे जारी रख पाओगे
युद्ध?
इन सबके विरुद्ध
तभी तो
कहा मैंने
युद्ध जारी है
अनवरत...
फिर वो चाहे
पसीजते रिश्तें हो
या फिर उनको
ढ़ोने की विवशता...
पहले भी जारी था
अब भी रहेगा
उन लोगों के खिलाफ
जो हैं चुप
अन्याय को सुन कर
बन्द हैं आंखे
ये सब देख कर
जी हाँ
जारी रहेगा युद्ध
असंभव के विरुद्ध
और
सनद रहे
मैं अकेला ही हूँ
</poem>
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युद्ध
असंभव के विरुद्ध
जारी है कदाचित
कब तक?
न मालूम कब तक
पर,
तब तक शायद
चांद तारें हों जब तक...
इतना लंबा युद्ध
सोचा है कभी
जारी रह पाएगा?
असंभव है इसका
जारी रह पाना...
नहीं नहीं
युद्ध तो होगा
असंयम के विरुद्ध...
समाज मे फैली हुई..
हर तरफ घुली हुई
सांस लेने में दूभर हुई
जहर से भी जहरीली
हवा के विरुद्ध...
कैसे जारी रख पाओगे
युद्ध?
इन सबके विरुद्ध
तभी तो
कहा मैंने
युद्ध जारी है
अनवरत...
फिर वो चाहे
पसीजते रिश्तें हो
या फिर उनको
ढ़ोने की विवशता...
पहले भी जारी था
अब भी रहेगा
उन लोगों के खिलाफ
जो हैं चुप
अन्याय को सुन कर
बन्द हैं आंखे
ये सब देख कर
जी हाँ
जारी रहेगा युद्ध
असंभव के विरुद्ध
और
सनद रहे
मैं अकेला ही हूँ
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