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Kavita Kosh से
मैं बरस पड़ूँगी तुमसे दूर
अचानक बढ़ आई किसी नदी की तरह ।
मैं ही बन जाऊँगी
धरती
आग
आसमान
हवा
पानी ।
जितना ही तुम बाँधोगे मुझे
उतना ही फफक उठूँगी मैं
क़ुदरती सोते-सी ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुधा तिवारी'''
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