भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
भूल भुलैया बन जाती हैं सीधी समतल सी राहें
आसान नहीं होता चंचल धारा में अचल खड़े होना है
सबके अपने अपने दुःख हैं, सबका अपना रोना है