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<poem>
स्त्री का समर्पण
शुक्राणु का भविष्य बदल देता है
भले ही,
वह शुक्राणु हो
एक अहंकारी पुरुष के वीर्य का अंश

परन्तु, स्नेहिल माता की स्निग्ध कोख में
आश्रय पा तज देता है अहंकार का गुण
हो जाती है तिरोहित क्रूरता की प्रवृत्ति
और धारण कर लेता है
माता के गुणों की शीतलता
सुनो !
दुनिया के दहशतगर्दों
नौ महीने कोख में रह कर जो सीखा
उसे कैसे भुला देते हो तुम सब?</poem>
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