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'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फणीश्वर नाथ रेणु |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
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{{KKRachna
|रचनाकार=फणीश्वर नाथ रेणु
|अनुवादक=
|संग्रह=कवि रेणु कहे / फणीश्वर नाथ रेणु
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
हाँ, याद है !
उचक्के जब मंचों से गरज रहे थे
हमने उन्हें प्रणाम किया था
पहनाया था हार !
भीतर प्राणों में काट रहे थे हमेंअगरहमारे वे बाप
हमारी बुझी ज्वाला को धधकाकर
हमें अग्निस्नान कराकर पापमुक्त
खरा बनाया ।
पल-विपल हम अवरुद्ध जले
धारा ने रोकी राह
हम विरुद्ध चले
हमें झकझोरकर तुमने जगाया था
’रथ के घरघर का नाद सुनो ...’
’आ रहा देवता जो, उसको पहचानो ...’
’अंगार हार अरपो रे ...’
वह आया सचमुच, एक हाथ में परशु
और दूसरे में कुश लेकर
किन्तु ... तुम ही रूठकर चले गए !
विशाल तम-तोम और चतुर्दिक घिरी
घटाओं की व्याकुलता से अशनि जन्मी,
धुआँ और उमस में
छटपटाता हुआ प्रकाश
खुलकर बाहर आया !
किन्तु, तुम ...?
अच्छा ही किया
तुम सप्राण
नहीं आए, नहीं तो
पता नहीं क्या हो जाता ?
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=कवि रेणु कहे / फणीश्वर नाथ रेणु
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<poem>
हाँ, याद है !
उचक्के जब मंचों से गरज रहे थे
हमने उन्हें प्रणाम किया था
पहनाया था हार !
भीतर प्राणों में काट रहे थे हमेंअगरहमारे वे बाप
हमारी बुझी ज्वाला को धधकाकर
हमें अग्निस्नान कराकर पापमुक्त
खरा बनाया ।
पल-विपल हम अवरुद्ध जले
धारा ने रोकी राह
हम विरुद्ध चले
हमें झकझोरकर तुमने जगाया था
’रथ के घरघर का नाद सुनो ...’
’आ रहा देवता जो, उसको पहचानो ...’
’अंगार हार अरपो रे ...’
वह आया सचमुच, एक हाथ में परशु
और दूसरे में कुश लेकर
किन्तु ... तुम ही रूठकर चले गए !
विशाल तम-तोम और चतुर्दिक घिरी
घटाओं की व्याकुलता से अशनि जन्मी,
धुआँ और उमस में
छटपटाता हुआ प्रकाश
खुलकर बाहर आया !
किन्तु, तुम ...?
अच्छा ही किया
तुम सप्राण
नहीं आए, नहीं तो
पता नहीं क्या हो जाता ?
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