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कटे-छँटे नम्रा के पेड़ों के नीचे गोरे साँवले बच्चे खेल रहे हैं जहाँ,
झड़ रहे पत्ते, बज रही तुरहियाँ क़ब्रिस्तान थरथरा रहे हैं वहाँ ।
उदास हैं मेपल के पेड़, पताकाओं से लहराते उनके सुर्ख़ पत्ते
कहकहे हैं, पागलपन है, सुर्ख़ पताकाओं के नीचे बज रही हैं तुरहियाँ ।
 '''अँग्रेज़ी मूल जर्मन से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
''' लीजिए, अब यह कविता अँग्रेज़ी अनुवाद में पढ़िए'''
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