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<poem>
मैं कल्पना करता हूँ —
जिन्होंने दुनिया भर के काम किए
उन सबका मालिक भी उन्हीं को होना चाहिए

और जो रोटी पकाते हैं
उन्हें रोटी खाने का भी अधिकार है

और प्रत्येक खदान में काम करने वालों को
उतनी ही रोशनी चाहिए ।

इस अन्तहीन शोषण को पहचानो
बेड़ियों में बंधे मैले-कुचैले लोगो !

बहुत हो गया अब
पीले पड़ चुके मेरे मृत नागरिको !

कोई भी न जीए अब
बगैर राज किए

एक भी स्‍त्री न हो मुकुटविहीन

प्रत्येक हाथ के लिए सुनहरे दस्ताने हों

अन्धेरे के सभी लोगों के लिए हो
सूर्य की यह
स्त्रोतस्विनी !


'''तनुज द्वारा अँग्रेज़ी से अनूदित'''
</poem>
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