भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
कहीं एस्तोनियाई तो नहीं, मन में पैदा हो गई शंका
तमाशबीनों की भीड़ ने तुरन्त लिया हमें यूँ घेर,
ऊपर से मैं शान्त था पर मन के भीतर था फेर
उसे एनजाइना की बीमारी है, उसने यह बताया
दवाइयों की ज़रूरत है, उसने यह भी समझाया
कमीज़ के नीचे दिल ने कुछ महसूस की शराफ़त
अँग्रेजी कमीज़ पहने था मैं, दिल में थी ये हरारत
विजिटिंग कार्ड निकाला उसने और मुझे थमाया
फिर बड़ी मौहब्बत से उसने लन्दन मुझे बुलाया
कहाँ रुकेगी रेलगाड़ी और उतरना है कहाँ - कैसे
कोई भी आपको बता देगा कहाँ रहता है जॉर्ज वैसे
भाई सैलानी, मैं नहीं आऊँगा, चाहे तुम जितना बुलाओ
अपने उन द्वीप समूहों से तुम चाहे कितना भी लुभाओ
वहाँ, कोहरा घना होता है कि दम घुट जाएगा मेरा
आदमखोर बघेरों के बीच, भला, क्या करेगा ये बछेरा
बिन सोडा नीट व्हिस्की पीकर जब हो जाऊँगा मदहोश
न जानूँ तमीज़ तुम्हारी, रानी की तौहीन करूँगा खोकर सब होश
बेहतर यही कि भैया, आप हमारे पास आएं हर साल
डालर, यूरो, पौण्ड जैसी अपनी सब मुद्रा लाएँ हर साल
'''रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''