भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जय गोस्वामी |अनुवादक=जयश्री पुरव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जय गोस्वामी
|अनुवादक=जयश्री पुरवार
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मेरे हज़ारों पंछी हैं इधर - उधर ।
रात के तीसरे पहर
मैं उन्हे जगा देता हूँ;
भोर होने से पहले ही वे कभी - कभी
मुझे भी एक चक्कर उड़ा लाते हैं ।
उस वक़्त तक नीचे धान के खेत मे
नींद की लहरें ठहरी हुई होती हैं
चाँद चला जाता है प्रायः अस्ताचल को
उड़ते - उड़ते महलनुमा मकान की
खिड़की से दिखता है
रात को नहीं हो पाया इसलिए
पति के बुलाने पर भोर रात को
आवाज़ देते हुए दुल्हन
बोल रही है पंछी की तरह ।
ऊषा, उस आवाज़ को सुनकर ,
ठिठककर खड़ी हो रही है
पीछे कटहल के बगीचे मे ।
'''जयश्री पुरवार द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित'''
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=जय गोस्वामी
|अनुवादक=जयश्री पुरवार
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मेरे हज़ारों पंछी हैं इधर - उधर ।
रात के तीसरे पहर
मैं उन्हे जगा देता हूँ;
भोर होने से पहले ही वे कभी - कभी
मुझे भी एक चक्कर उड़ा लाते हैं ।
उस वक़्त तक नीचे धान के खेत मे
नींद की लहरें ठहरी हुई होती हैं
चाँद चला जाता है प्रायः अस्ताचल को
उड़ते - उड़ते महलनुमा मकान की
खिड़की से दिखता है
रात को नहीं हो पाया इसलिए
पति के बुलाने पर भोर रात को
आवाज़ देते हुए दुल्हन
बोल रही है पंछी की तरह ।
ऊषा, उस आवाज़ को सुनकर ,
ठिठककर खड़ी हो रही है
पीछे कटहल के बगीचे मे ।
'''जयश्री पुरवार द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित'''
</poem>