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|रचनाकार=दीपा मिश्रा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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{{KKCatMaithiliRachnakaar}}
<poem>
रातिक दू बजैत छल
साओर संबंधिक
सब चलि गेल छल
चारि दिन पूर्व
बेटाक विवाह भेल छलैन
पाइन पीबाक लेल उठलीह
पुतौहु आ बेटाक केवाड़सँ
अबाज अबैत सुनलैन्ह
कतेक बरखक बाद
किछु मोन पड़लैन
बुझेलैन जे हुनक भीतर
एकटा स्त्री सेहो छैन
बारह वर्ष पूर्व
ओहि घटनाक बाद
ओ बस बेटाकेँ बनाबयमे
अपनाकेँ झोंकि देने छलीह
हाथमे पकड़ल
गिलास राखि देलैन
झरनाक नीचा ठाड़ भऽ गेलीह
आब पाइन आगि
किछुक भान नै छलन्हि
ई ताप ओना पाइनोसँ
मिटाइ बला नहि छल
ई बात बुझबाक आवश्यकता
समाजकेँ कहियो नहि भेल
ओ कहियो ई कहाँ सोचलक
विधुर पुनर्विवाह कऽ
नब जीवन पबैत छलाह
सबटा नियम परंपरा
रूढ़िवादिताक हथकड़ी
वैधव्य केँ पहिरा देल गेल
</poem>
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रातिक दू बजैत छल
साओर संबंधिक
सब चलि गेल छल
चारि दिन पूर्व
बेटाक विवाह भेल छलैन
पाइन पीबाक लेल उठलीह
पुतौहु आ बेटाक केवाड़सँ
अबाज अबैत सुनलैन्ह
कतेक बरखक बाद
किछु मोन पड़लैन
बुझेलैन जे हुनक भीतर
एकटा स्त्री सेहो छैन
बारह वर्ष पूर्व
ओहि घटनाक बाद
ओ बस बेटाकेँ बनाबयमे
अपनाकेँ झोंकि देने छलीह
हाथमे पकड़ल
गिलास राखि देलैन
झरनाक नीचा ठाड़ भऽ गेलीह
आब पाइन आगि
किछुक भान नै छलन्हि
ई ताप ओना पाइनोसँ
मिटाइ बला नहि छल
ई बात बुझबाक आवश्यकता
समाजकेँ कहियो नहि भेल
ओ कहियो ई कहाँ सोचलक
विधुर पुनर्विवाह कऽ
नब जीवन पबैत छलाह
सबटा नियम परंपरा
रूढ़िवादिताक हथकड़ी
वैधव्य केँ पहिरा देल गेल
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