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अम्बर को छूने लगा,जब तेरा अनुराग ।
इस दुनिया को क्या कहें, रोज़ लगाती दाग़ ॥
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मेघा बरसें प्रेम के, भीगा मन- आकाश।
एक बार तुम आ मिलो, बँध जाओ भुजपाश।
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