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{{KKRachna
|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
}}
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<poem>
कब तट से पारावार बँधा
कब किस आँचल से प्यार बँधा
बँध सका समय कब धड़कन से
कब अम्बर का विस्तार बँधा
हम बाँचेंगे मन के आँचल में
मिला यही अधिकार हमें।
आवेग मिलन का सह लेते सब
कौन बिछोह को सह पाया है
भीगा शब्दों का हर कोना
वह अनचाहा अवसर आया है।
अँजुरी भर फूल आँसुओं के
मिल गए सरस आधार हमें।
कौन यहाँ घर बाँध सका है
कौन सदा रह पाएगा
है कुछ का सफर सवेरे का
कोई शाम हुई तो जाएगा
ले लेना सब सुख के सपने
दे देना सब अंधकार हमें।
(31-8-1983)
</poem>
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कब तट से पारावार बँधा
कब किस आँचल से प्यार बँधा
बँध सका समय कब धड़कन से
कब अम्बर का विस्तार बँधा
हम बाँचेंगे मन के आँचल में
मिला यही अधिकार हमें।
आवेग मिलन का सह लेते सब
कौन बिछोह को सह पाया है
भीगा शब्दों का हर कोना
वह अनचाहा अवसर आया है।
अँजुरी भर फूल आँसुओं के
मिल गए सरस आधार हमें।
कौन यहाँ घर बाँध सका है
कौन सदा रह पाएगा
है कुछ का सफर सवेरे का
कोई शाम हुई तो जाएगा
ले लेना सब सुख के सपने
दे देना सब अंधकार हमें।
(31-8-1983)
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