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सरायन / राकेश कुमार पटेल

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अरी सरायन!
मेरी प्यारी नन्ही-सी नदी
वर्षों बाद तुझे देखा आज फिर
और दिल भर आया
तेरे किनारे बैठ करबैठकर
तुझे नदी समझकर
कुछ पानी-सा ढूढ़ ढूँढ़ रहा था मैंऔर तू जोरों ज़ोरों से रो पड़ी
तेरे काले आँसू छलछलाकर
धीरे से ढुलक पडे।पड़े ।
किसानों ने जोत डाला
तुझे खेत बनाकर
शहर वालों ने उड़ेल दिया है
सारी गंदगी और जहर ज़हर तुझमें
अब तुझे मरने से कौन रोक सकता है
मेरी नन्ही-सी प्यारी-सी नदी!
</poem>
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