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Kavita Kosh से
बहुत कुछ तुम्हारे शहर से है ग़ायब
यहाँ तक कि पानी नज़र से है ग़ायब
तुम्हारी है गंगा, तुम्हीं अब संभालो
मेरी प्यास मेरे अधर से है ग़ायब।
किसी ने ग़रीबों की बस्ती उजाड़ी
जला घर हमारा ख़बर से है ग़ायब
बड़ी बात तूने ग़ज़ल में कही है, पर
नहीं ध्यान रक्खा बहर से है ग़ायब