भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKCatKavita}}
<poem>
हमारी हिंदी हिन्दी एक दुहाजू की नई बीबी हैबहुत बोलने वाली बोलनेवाली बहुत खानेवाली बहुत सोनेवाली
गहने गढ़ाते जाओ
एक नागिन की स्टोरी बमय गाने
और एक खारी बावली में छपा कोकशास्त्र
एक खूसट महरिन है परपंच परपँच के लिएएक अधेड़ खसम ख़सम है जिसके प्राण अकच्छ किये किए जा सकेंएक गुचकुलिया-सा आँगन कई कमरे कुठरिया एक के अंदर अन्दर एक
बिस्तरों पर चीकट तकिए कुरसियों पर गौंजे हुए उतारे कपड़े
फ़र्श पर ढंनगते गिलास
घर में सबकुछ है जो औरतों को चाहिए
सीलन भी और अंदर अन्दर की कोठरी में पाँच सेर सोना भीऔर संतान सन्तान भी जिसका जिगर बढ बढ़ गया है
जिसे वह मासिक पत्रिकाओं पर हगाया करती है
और ज़मीन भी जिस पर हिंदी हिन्दी भवन बनेगा
कहनेवाले चाहे कुछ कहें
हमारी हिंदी हिन्दी सुहागिन है सती है खुश ख़ुश हैउसकी साध यही है कि खसम ख़सम से पहले मरेऔर तो सब ठीक है पर पहले खसम ख़सम उससे बचे
तब तो वह अपनी साध पूरी करे ।
(1957)
</poem>