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Kavita Kosh से
जनम- जनम की साधना, प्राणों की मनुहार।
पुनर्जन्म यदि हो कभी, मिले तुम्हारा द्वार।
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दरवाज़े कम हैं यहाँ, लाखों हैं दीवार ।
हार गया पथ ढूँढते, बहुत दूर है प्यार।
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आँगन -आँगन पूछता, कहाँ छुपे हो मीत।
दो पल आकरके मिलो, तुम्हें तरसती प्रीत।
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