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Kavita Kosh से
साथ बिताए समय का काँटा चुनने ...।
उनकी ’Transmutation’ यानी ’रूपान्तरण’ शीर्षक कविता का अनुवाद करने के लिए मैंने विश्व मोहिनी का पूरा मिथक उठा लिया ।जब मैंने कविता के ढाँचे में एक पंक्ति में इस मिथक को रखा तो ऊपर तक पूरी कविता के जिस्म में पानी सी लरजिश हुई ।
"साथी बदलने की स्थिति में भी निरपेक्षता प्रवाहित होती है" से शुरू होने वाली इस कविता में अपने तीव्र क्षेपक प्रक्षेपण अनुक्रम की संगत के बीच एक बन्दर - मुख उभरा । सिंहासन पर रखे खड़ाऊँ उड़ा लिए गए
और उस पर हंसती विश्व मोहिनी ने उच्चारा : "नारायण ... नारायण ...।"