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|रचनाकार=शिवप्रसाद जोशी
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इन दिनों
यथार्थ सारे घुल-मिल गए अतियथार्थो के निर्माण में
जैसे बहुमत में घुल-मिल गए बहुत सारे बहुमत
संस्कृति घुल-मिल गई है वर्चस्व में
तुम्हारे अपने यथार्थ का हश्र भी वहीं कहीं होगा
ख़ून में या कराह में ।
</poem>
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यथार्थ सारे घुल-मिल गए अतियथार्थो के निर्माण में
जैसे बहुमत में घुल-मिल गए बहुत सारे बहुमत
संस्कृति घुल-मिल गई है वर्चस्व में
तुम्हारे अपने यथार्थ का हश्र भी वहीं कहीं होगा
ख़ून में या कराह में ।
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