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Kavita Kosh से
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होती है दहलीज़ पर बरसात, चकित मैं, स्वप्न देखता हूँ तुम्हारा,
चोटियों पर गिरती है बर्फ़, चकित मैं, स्वप्न देखता हूँ तुम्हारा ।तुम्हारा।
भोर का निरभ्र आकाश, चकित मैं, स्वप्न देखता हूँ तुम्हारा,