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{{KKRachna
|रचनाकार=जों दैव
|अनुवादक=योजना रावत
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
हवा के नीचे
मैंने देखी है अदृश्य होती
आख़िरी शाम की सतत रोशनी
पँख तब धीमे थे
और
काँटे अधिक फैले हुए
आकाश के पार
एक धब्बा खोलता जलवृक्ष
जबकि दूसरी तरफ़
एक पत्ती तक नहीं
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : योजना रावत'''
</poem>
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|अनुवादक=योजना रावत
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}}
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हवा के नीचे
मैंने देखी है अदृश्य होती
आख़िरी शाम की सतत रोशनी
पँख तब धीमे थे
और
काँटे अधिक फैले हुए
आकाश के पार
एक धब्बा खोलता जलवृक्ष
जबकि दूसरी तरफ़
एक पत्ती तक नहीं
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : योजना रावत'''
</poem>