भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
51
'''आजादी की भोर है''', मन में भर उल्लास।
घुट- घुट जीना छोड़ दे, खुल कर ले अब साँस।।
52
रानी, बांदी बन गई, जीना हुआ मुहाल।
61
बलि दहेज पर चढ़ गयी,मिली न सुख की छाँव।
जीवन स्वाहा तब हुआ, भारी थे जब पाँव। ।
62