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Kavita Kosh से
आजकल मसक्वा तरबूजों से अटा पड़ा है
जहाँ नज़र डालो वहाँ तरबूज दिखाई देते हैं
तेज़ बहती हवा उसे फैला रही है चारों ओर
कि उत्साह में हैं तरबूज़ बेचने वाली लड़कियाँ
अपने-अपने ठियों पर ।
चारों तरफ़ गुलगपाड़ा मचा है - कोलाहलहैहँस रही हैं लड़कियाँ !हँसते-हँसते हुई बेहाल हैं
लोग तरबूजों को ठोक-बजा रहे हैं उँगलियों से
वजन देख रहे हैं उन्हें उठा-उठाकर
कुछ चाकू से उसकी फाँकें काट रहे हैं
कुछ देख खोज रहे हैं पूरा जखीरा
उसमें ढूँढ़ रहे हैं कोई मीठा मतीरा ।
अरे गुरु, धक्का-मुक्की मत करो,
गिर जाएँगे सारे तरबूज
फटजाएँगे -खुल जाएँगे दो-चार
ख़त्म हो जाएगा उनका सारा उरूज ।
उतना ही रसदार, स्वादिष्ट और मदभरा है
ठिये पर दिखती है पुलिस की टोपी
मोटरसाइकिल से उतरकर उतर आया है गोपी
उसकी आँखों में चमक है, अपनापन है